दिया क्यों जीवन का वरदान?
इसमें है स्मृतियों की कम्पन;
सुप्त व्यथाओं का उन्मीलन;
स्वप्नलोक की परियां इसमें
भूल गईं मुस्कान!
इसमें है झंझा का शैशव;
अनुरंजित कलियों का वैभव;
मलयपवन इसमें भर जाता
मृदु लहरों के गान!
इन्द्रधनुष सा घन-अंचल में;
तुहिनबिन्दु सा किसलय दल में;
करता है पल पल में देखो
मिटने का अभिमान!
सिकता में अंकित रेखा सा;
वात-विकम्पित दीपशिखा था,
काल-कपोलों पर आँसू सा
ढुल जाता हो म्लान!
रचयिता: महादेवी वर्मा
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महादेवी वर्मा (२६ मार्च १९०७ — ११ सितंबर १९८७)
हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से थीं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों[] में से एक मानी जाती हैं।[
आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है।[
कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है।