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Sunday 21 March 2021

उपालम्भ / महादेवी वर्मा

दिया क्यों जीवन का वरदान?

इसमें है स्मृतियों की कम्पन;
सुप्त व्यथाओं का उन्मीलन;
स्वप्नलोक की परियां इसमें
भूल गईं मुस्कान!

इसमें है झंझा का शैशव;
अनुरंजित कलियों का वैभव;
मलयपवन इसमें भर जाता
मृदु लहरों के गान!

इन्द्रधनुष सा घन-अंचल में;
तुहिनबिन्दु सा किसलय दल में;
करता है पल पल में देखो
मिटने का अभिमान!

सिकता में अंकित रेखा सा;
वात-विकम्पित दीपशिखा था,
काल-कपोलों पर आँसू सा
ढुल जाता हो म्लान!

रचयिता: महादेवी वर्मा 

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महादेवी वर्मा (२६ मार्च १९०७ — ११ सितंबर १९८७) 

हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से थीं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों[] में से एक मानी जाती हैं।[ 

आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है।[

कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है।

7 comments:

  1. महादेवी जी की यह कविता मैंने प्रथम बार आप ही के सौजन्य से पढ़ी । कविता तो उत्कृष्ट है ही, मेरी कृतज्ञता के पात्र आप हैं पुरुषोत्तम जी क्योंकि इसे आपने उपलब्ध कराया है ।

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    1. मेरी माध्यम से आप इस उत्कृष्टता का रसास्वादन कर पाए, मेरा प्रयास सफल हुआ।
      शुक्रिया माथुर जी।

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  2. महादेवी जी की एक बहुत ही सुंदर रचना शेयर करने के लिए धन्यवाद, पुरुषोत्तम भाई।

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  3. इस अद्भुत रचना को हम सब से सांझा किया आपने, इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यबाद

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  4. अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
    greetings from malaysia
    let's be friend

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