Followers

Sunday, 12 May 2019

गलतफहमी


कभी अपनी फिक्र नहीं होती उन्हें
दूसरों की चिंता में
अपने सुनहरे जीवन की
कुर्बानी देने से भी
कभी घबराते नहीं वे.
परायों को भी अपना
बना लेने का गुर
कोई इनसे सीखे.
इनका प्रयोजन
कभी गलत नहीं था
फिर भी वे इल्जाम लगाते हैं,
कि इनके ही कारण कई
अपने प्राणों से
हाथ धो बैठे.
कई जीवन उजड़ गए.
कई घर तबाह हो गए.
और भी न जाने क्या क्या.
पर ये हमेशा निर्दोष ही साबित हुए
इनकी इसमें कोई गलती ही नहीं थी
दूसरों ने इन्हें समझने की
कभी कोशिश ही नहीं की
और स्वयं ही गलतफहमी
का शिकार हो गए.
पर इक्के दुक्के जो
गलतफहमियों
के भँवर से निकलने में
कामयाब रहे,
वे खुश रहने लगे.
इसमें गलती गलतफहमी
पालनेवाले की है न कि उनकी.
फिर भी प्रत्येक बार
वे उन्हें ही दोष देते हैं.
परिणामस्वरूप खुद ही पछताते भी हैं.
वे क्यों नहीं समझते कि
अच्छे मकसद से किए गए
जुर्म की सजा नहीं सुनाई जाती.
यही विधाता के दरबार का भी नियम है.
जबसे यह पृथ्वी प्रकट हुई है
उनका प्राकट्य भी तभी हुआ था.
तभी से उनका नाम चला आ रहा है.
वे अजर हैं और अमर भी.
और हम उन्हें
कभी कभार प्रेम से,
परंतु, ज्यादातर घृणा से
पुकारते हैं - 'लोग।'


15 comments:

  1. सारांश लिख दिया है आपने। "लोग" वह शब्द है जिससे हम अभी भी अपरिचित हैं ।
    सुन्दर ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया Pk भाई 🙏 🙏

      Delete
  2. गलतफहमियों
    के भँवर से निकलने में
    कामयाब रहे,
    वे खुश रहने लगे.
    इसमें गलती गलतफहमी
    पालनेवाले की है न कि उनकी.
    फिर भी प्रत्येक बार
    वे उन्हें ही दोष देते.... बेहतरीन सृजन सखी
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय तल से आभार सखी 🙏

      Delete
  3. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर....रचना

    ReplyDelete
  5. प्रभावशाली रचना

    ReplyDelete
  6. बहुत खूब जबरदस्त ताना बाना अंत तक जिज्ञासा बनी रही बहुत सटीक अभिव्यक्ति ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. कुसुम दी, आपकी प्रतिक्रिया ने रचना की शोभा बढ़ा दी. शुक्रिया 🙏

      Delete
  7. शुक्रिया सखी 🙏

    ReplyDelete
  8. बहुत ही सुंदर रचना, सुधा दी।

    ReplyDelete