कभी अपनी फिक्र नहीं होती उन्हें
दूसरों की चिंता में
अपने सुनहरे जीवन की
कुर्बानी देने से भी
कभी घबराते नहीं वे.
परायों को भी अपना
बना लेने का गुर
कोई इनसे सीखे.
इनका प्रयोजन
कभी गलत नहीं था
फिर भी वे इल्जाम लगाते हैं,
कि इनके ही कारण कई
अपने प्राणों से
हाथ धो बैठे.
कई जीवन उजड़ गए.
कई घर तबाह हो गए.
और भी न जाने क्या क्या.
पर ये हमेशा निर्दोष ही साबित हुए
इनकी इसमें कोई गलती ही नहीं थी
दूसरों ने इन्हें समझने की
कभी कोशिश ही नहीं की
और स्वयं ही गलतफहमी
का शिकार हो गए.
पर इक्के दुक्के जो
गलतफहमियों
के भँवर से निकलने में
कामयाब रहे,
वे खुश रहने लगे.
इसमें गलती गलतफहमी
पालनेवाले की है न कि उनकी.
फिर भी प्रत्येक बार
वे उन्हें ही दोष देते हैं.
परिणामस्वरूप खुद ही पछताते भी हैं.
वे क्यों नहीं समझते कि
अच्छे मकसद से किए गए
जुर्म की सजा नहीं सुनाई जाती.
यही विधाता के दरबार का भी नियम है.
जबसे यह पृथ्वी प्रकट हुई है
उनका प्राकट्य भी तभी हुआ था.
तभी से उनका नाम चला आ रहा है.
वे अजर हैं और अमर भी.
और हम उन्हें
कभी कभार प्रेम से,
परंतु, ज्यादातर घृणा से
पुकारते हैं - 'लोग।'
सारांश लिख दिया है आपने। "लोग" वह शब्द है जिससे हम अभी भी अपरिचित हैं ।
ReplyDeleteसुन्दर ।
बहुत बहुत शुक्रिया Pk भाई 🙏 🙏
Deleteबहुत ख़ूब
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय 🙏
Deleteगलतफहमियों
ReplyDeleteके भँवर से निकलने में
कामयाब रहे,
वे खुश रहने लगे.
इसमें गलती गलतफहमी
पालनेवाले की है न कि उनकी.
फिर भी प्रत्येक बार
वे उन्हें ही दोष देते.... बेहतरीन सृजन सखी
सादर
हृदय तल से आभार सखी 🙏
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत सुंदर....रचना
ReplyDeleteआभारी हूँ सखी 🙏
Deleteप्रभावशाली रचना
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीय 🙏
Deleteबहुत खूब जबरदस्त ताना बाना अंत तक जिज्ञासा बनी रही बहुत सटीक अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteकुसुम दी, आपकी प्रतिक्रिया ने रचना की शोभा बढ़ा दी. शुक्रिया 🙏
Deleteशुक्रिया सखी 🙏
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना, सुधा दी।
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