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Saturday, 26 October 2019

जलाओ दिये - गोपाल दास नीरज

जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए

नई ज्योति के धर नये पंख झिलमिल,
उड़े मर्त्य मिट्टी गगन-स्वर्ग छू ले,
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी,
निशा की गली में तिमिर राह भूले,
खुले मुक्ति का वह किरण-द्वार जगमग,
उषा जा न पाए, निशा आ ना पाए।

जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए

सृजन है अधूरा अगर विश्व भर में,
कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी,
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी,
कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी,
चलेगा सदा नाश का खेल यों ही,
भले ही दिवाली यहाँ रोज आए।

जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए

मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ़ जग में,
नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा,
उतर क्यों न आएँ नखत सब नयन के,
नहीं कर सकेंगे हृदय में उजेरा,
कटेगे तभी यह अँधेरे घिरे अब
स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए।

जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए

- नीरज

10 comments:

  1. DIWALI KE SUAWSAR PR saarthak aur sateek rchnaa share krne ke liye dhanywaad

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  2. गोपाल दास नीरज जी के लेखन को प्रणाम

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  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  5. बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  6. स्कूल के दिनों में पाठ्यपुस्तक में इस गीत को पढ़े लेकिन यह मेरा सौभाग्य था की बड़े होकर नीरज जी के साथ दो तीन बार काव्य पाठ का अवसर मिला |

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  7. आप बहुत ही सौभाग्यशाली हैं। बधाई व शुभकामनाएं आदरणीय

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  8. यह अधरों पर ही नहीं ह्रदय में सदा जीवित रहने वाली नीरज जी की अमर रचना है |स्मरण कराने के लिए बहुत बहुत आभार |

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