संभव है डूब जाएँ, सृष्टि की ये कल्पनाएँ!
व्यथा के अनुक्षण, लाख बाहों में कसे,
विरह के कालाक्रमण, नाग बन कर डसे,
हर क्षण संताप दे, हर क्षण तुझ पर हँसे,
भटकने न देना, तुम मन की दिशाएँ!
संभव है डूब जाएँ, सृष्टि की ये कल्पनाएँ!
तिरने न देना, इक बूँद भी नैनों से जल,
या प्रलय हो, या हो हृदय दु:ख से विकल,
दुविधाओं के मध्य, या नैन तेरे हो सजल,
भीगोने ना देना, इन्हें मन की ऋचाएँ!
संभव है डूब जाएँ, सृष्टि की ये कल्पनाएँ!
गर ये नैन निर्झर, अनवरत बहती रही,
गर पिघलती रही, यूं ही सदा ये हिमगिरी,
गलकर हिमशिखर, स्खलित होती रही,
कौन वाचेगा यहाँ, वेदों की ऋचाएँ!
संभव है डूब जाएँ, सृष्टि की ये कल्पनाएँ!
ध्यान रखना, ऐ पंखुडी की भित्तियाँ,
निस्पंद मन भ्रमर, अभी जीवित है यहाँ,
ये काल-चक्र, डूबोने आएंगी पीढियाँ,
साँसें साधकर, वाचना तुम ॠचाएँ!
संभव है डूब जाएँ, सृष्टि की ये कल्पनाएँ!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
व्यथा के अनुक्षण, लाख बाहों में कसे,
विरह के कालाक्रमण, नाग बन कर डसे,
हर क्षण संताप दे, हर क्षण तुझ पर हँसे,
भटकने न देना, तुम मन की दिशाएँ!
संभव है डूब जाएँ, सृष्टि की ये कल्पनाएँ!
तिरने न देना, इक बूँद भी नैनों से जल,
या प्रलय हो, या हो हृदय दु:ख से विकल,
दुविधाओं के मध्य, या नैन तेरे हो सजल,
भीगोने ना देना, इन्हें मन की ऋचाएँ!
संभव है डूब जाएँ, सृष्टि की ये कल्पनाएँ!
गर ये नैन निर्झर, अनवरत बहती रही,
गर पिघलती रही, यूं ही सदा ये हिमगिरी,
गलकर हिमशिखर, स्खलित होती रही,
कौन वाचेगा यहाँ, वेदों की ऋचाएँ!
संभव है डूब जाएँ, सृष्टि की ये कल्पनाएँ!
ध्यान रखना, ऐ पंखुडी की भित्तियाँ,
निस्पंद मन भ्रमर, अभी जीवित है यहाँ,
ये काल-चक्र, डूबोने आएंगी पीढियाँ,
साँसें साधकर, वाचना तुम ॠचाएँ!
संभव है डूब जाएँ, सृष्टि की ये कल्पनाएँ!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
प्रभावी और भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ज्योति खरे जी ।
Deleteबहुत अच्छी रचना।
ReplyDeleteसादर आभार ।
Deleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीया कविता जी।
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीया अनुराधा जी।
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