मेरे उर में क्या अन्तर्हित है, यदि यह जिज्ञासा हो,
दर्पण ले कर क्षण भर उस में मुख अपना, प्रिय! तुम लख लो!
यदि उस में प्रतिबिम्बित हो मुख सस्मित, सानुराग, अम्लान,
'प्रेम-स्निग्ध है मेरा उर भी', तत्क्षण तुम यह लेना जान!
यदि मुख पर सोती अवहेला या रोती हो विकल व्यथा;
दया-भाव से झुक जाना, प्रिय! समझ हृदय की करुण व्यथा!
मेरे उर में क्या अन्तर्हित है, यदि यह जिज्ञासा हो,
दर्पण ले कर क्षण भर उस में मुख अपना, प्रिय! तुम लख लो!
...................................................
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"
(7 मार्च,1911-4 अप्रैल,1987) -
1964 में "आँगन के पार द्वार" पर उन्हें साहित्य अकादमी का और 1978 में "कितनी नावों में कितनी बार" पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला ।
आप की प्रमुख कृतियां हैं; कविता संग्रह: भग्नदूत 1933, चिन्ता 1942, इत्यलम् 1946, हरी घास पर क्षण भर 1949, बावरा अहेरी 1954, इन्द्रधनु रौंदे हुये ये 1957, अरी ओ कस्र्णा प्रभामय 1959, आँगन के पार द्वार 1961, कितनी नावों में कितनी बार (1967), क्योंकि मैं उसे जानता हूँ (1970), सागर मुद्रा (1970), पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ (1974), महावृक्ष के नीचे (1977), नदी की बाँक पर छाया (1981), ऐसा कोई घर आपने देखा है (1986), प्रिज़न डेज़ एण्ड अदर पोयम्स (अंग्रेजी में,1946)। कहानियाँ: विपथगा 1937, परम्परा 1944, कोठरीकी बात 1945, शरणार्थी 1948, जयदोल 1951; चुनी हुई रचनाओं के संग्रह: पूर्वा (1965), सुनहरे शैवाल (1965), अज्ञेय काव्य स्तबक (1995), सन्नाटे का छन्द, मरुथल; संपादित संग्रह: तार सप्तक, दूसरा सप्तक, तीसरा सप्तक, पुष्करिणी (1953) । आपने उपन्यास, यात्रा वृतान्त, निबंध संग्रह, आलोचना, संस्मरण, डायरियां, विचार गद्य: और नाटक भी लिखे ।
दर्पण ले कर क्षण भर उस में मुख अपना, प्रिय! तुम लख लो!
यदि उस में प्रतिबिम्बित हो मुख सस्मित, सानुराग, अम्लान,
'प्रेम-स्निग्ध है मेरा उर भी', तत्क्षण तुम यह लेना जान!
यदि मुख पर सोती अवहेला या रोती हो विकल व्यथा;
दया-भाव से झुक जाना, प्रिय! समझ हृदय की करुण व्यथा!
मेरे उर में क्या अन्तर्हित है, यदि यह जिज्ञासा हो,
दर्पण ले कर क्षण भर उस में मुख अपना, प्रिय! तुम लख लो!
...................................................
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"
(7 मार्च,1911-4 अप्रैल,1987) -
1964 में "आँगन के पार द्वार" पर उन्हें साहित्य अकादमी का और 1978 में "कितनी नावों में कितनी बार" पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला ।
आप की प्रमुख कृतियां हैं; कविता संग्रह: भग्नदूत 1933, चिन्ता 1942, इत्यलम् 1946, हरी घास पर क्षण भर 1949, बावरा अहेरी 1954, इन्द्रधनु रौंदे हुये ये 1957, अरी ओ कस्र्णा प्रभामय 1959, आँगन के पार द्वार 1961, कितनी नावों में कितनी बार (1967), क्योंकि मैं उसे जानता हूँ (1970), सागर मुद्रा (1970), पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ (1974), महावृक्ष के नीचे (1977), नदी की बाँक पर छाया (1981), ऐसा कोई घर आपने देखा है (1986), प्रिज़न डेज़ एण्ड अदर पोयम्स (अंग्रेजी में,1946)। कहानियाँ: विपथगा 1937, परम्परा 1944, कोठरीकी बात 1945, शरणार्थी 1948, जयदोल 1951; चुनी हुई रचनाओं के संग्रह: पूर्वा (1965), सुनहरे शैवाल (1965), अज्ञेय काव्य स्तबक (1995), सन्नाटे का छन्द, मरुथल; संपादित संग्रह: तार सप्तक, दूसरा सप्तक, तीसरा सप्तक, पुष्करिणी (1953) । आपने उपन्यास, यात्रा वृतान्त, निबंध संग्रह, आलोचना, संस्मरण, डायरियां, विचार गद्य: और नाटक भी लिखे ।