नहीं, कुछ भी नहीं!
तुम, न हो तो, कहीं कुछ भी नहीं!
हाँ, बीत जाते हैं जो, साथ होते नहीं,
पर वो पल, बीत पाते हैं कहाँ!
सजर ही आते हैं, कहीं, मन की धरा पर,
पलों के, विशाल यूकेलिप्टस!
लपेटे, सूखे से छाले,
फटे पुराने!
नया, कुछ भी नहीं....
बीत जाते हैं युग, वक्त बीतता नहीं,
कुछ, वक्त के परे, रीतता नहीं!
अकेले ही भीगता, पलों का यूकेलिप्टस,
कहीं शून्य में, सर को उठाए!
लपेटे, भीगे से छाले,
फटे पुराने!
नया, कुछ भी नहीं....
हाँ, पुराने वो पल, पुरानी सी बातें,
गुजरे से कल, रुहानी वो रातें!
उभर ही आते हैं, कहीं, मन की धरा पर,
लह-लहाते, वो यूकेलिप्टस!
लपेटे, रूखे से छाले,
फटे पुराने!
और, कुछ भी नहीं!
तुम, न हो तो, कहीं कुछ भी नहीं!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 16 मई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति सर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति. हार्दिक बधाई.
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समय की छाप मिटती नहीं .सुन्दर रचना !
ReplyDeleteऔर, कुछ भी नहीं!
ReplyDeleteतुम, न हो तो, कहीं कुछ भी नहीं!,,,,,,, बहुत सुंदर रचना, शुभकामनाएँ
Thanks for informative post. It has been made easy for me
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ReplyDeleteचंद्रघंटा माता की आरती लिरिक्स
Tune Mere Jana
ReplyDeleteदेश मेरे देशभक्ति गीत
ReplyDeleteतेरी मिट्टी में मिल जावां
ReplyDeleteSanskrit Counting 1 To 100
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