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Saturday, 24 April 2021

अमर स्पर्श / सुमित्रानंदन पंत

खिल उठा हृदय,
पा स्पर्श तुम्हारा अमृत अभय!

खुल गए साधना के बंधन,
संगीत बना, उर का रोदन,
अब प्रीति द्रवित प्राणों का पण,
सीमाएँ अमिट हुईं सब लय।

 क्यों रहे न जीवन में सुख दुख, 
क्यों जन्म मृत्यु से चित्त विमुख?
तुम रहो दृगों के जो सम्मुख, 
प्रिय हो मुझको भ्रम भय संशय!

तन में आएँ शैशव यौवन, 
मन में हों विरह मिलन के व्रण,
युग स्थितियों से प्रेरित जीवन, 
उर रहे प्रीति में चिर तन्मय!

जो नित्य अनित्य जगत का क्रम, 
वह रहे, न कुछ बदले, हो कम,
हो प्रगति ह्रास का भी विभ्रम,
जग से परिचय, तुमसे परिणय!

तुम सुंदर से बन अति सुंदर, 
आओ अंतर में अंतर तर,
तुम विजयी जो, प्रिय हो मुझ पर 
 वरदान, पराजय हो निश्चय!

रचयिता -सुमित्रानंदन पंत 
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सुमित्रानंदन पंत (२० मई १९०० - २८ दिसम्बर १९७७हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। इस युग को जयशंकर प्रसादमहादेवी वर्मासूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' और रामकुमार वर्मा जैसे कवियों का युग कहा जाता है। उनका जन्म कौसानी बागेश्वर में हुआ था। झरना, बर्फ, पुष्प, लता, भ्रमर-गुंजन, उषा-किरण, शीतल पवन, तारों की चुनरी ओढ़े गगन से उतरती संध्या ये सब तो सहज रूप से काव्य का उपादान बने। निसर्ग के उपादानों का प्रतीक व बिम्ब के रूप में प्रयोग उनके काव्य की विशेषता रही। 

१९०७ से १९१८ के काल को स्वयं उन्होंने अपने कवि-जीवन का प्रथम चरण माना है। इस काल की कविताएँ वाणी में संकलित हैं। सन् १९२२ में उच्छ्वास और १९२६ में पल्लव का प्रकाशन हुआ। सुमित्रानंदन पंत की कुछ अन्य काव्य कृतियाँ हैं - ग्रन्थिगुंजनग्राम्यायुगांतस्वर्णकिरणस्वर्णधूलिकला और बूढ़ा चाँदलोकायतनचिदंबरासत्यकाम आदि। उनके जीवनकाल में उनकी २८ पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिनमें कविताएं, पद्य-नाटक और निबंध शामिल हैं। पंत अपने विस्तृत वाङमय में एक विचारक, दार्शनिक और मानवतावादी के रूप में सामने आते हैं किंतु उनकी सबसे कलात्मक कविताएं 'पल्लव' में संगृहीत हैं, जो १९१८ से १९२५ तक लिखी गई ३२ कविताओं का संग्रह है। इसी संग्रह में उनकी प्रसिद्ध कविता 'परिवर्तन' सम्मिलित है। 'तारापथ' उनकी प्रतिनिधि कविताओं का संकलन है।उन्होंने ज्योत्स्ना नामक एक रूपक की रचना भी की है। उन्होंने मधुज्वाल नाम से उमर खय्याम की रुबाइयों के हिंदी अनुवाद का संग्रह निकाला और डाॅ.हरिवंश राय बच्चन के साथ संयुक्त रूप से खादी के फूल नामक कविता संग्रह प्रकाशित करवाया। 
चिदम्बरा पर इन्हे 1972 मे ज्ञानपीठ पुरस्कार से, काला और बूढ़ा चांद पर साहित्त्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।

8 comments:

  1. सुमित्रानंदन पंत जी की बहुत ही सुंदर कविता उर उनके बारे में जानकारी शेयर करने हेतु धन्यवाद।

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  2. Replies
    1. मेरी साहित्यिक यात्रा में साथ चलने हेतु आभार

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  3. जग से परिचय, तुमसे परिणय। पंत जी की अप्रतिम रचना को साझा करने हेतु हृदय से आभार आदरणीय पुरुषोत्तम जी।

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