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Friday, 2 August 2019

नर हो न निराश


3 अगस्त की तारीख हिंदी साहित्य के लिए बेहद विशेष है। सन 1886 में इसी दिन, राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त का जन्म हुआ  था।  उनकी कविताओं नें देशवासियों और नौजवानों में प्रेरणा और जोश का संचार कर दिया था। उनकी जयंती पर, उन्ही की ये कविता, जो हमें ऊर्जा और सकारात्मकता से भर देती है।

नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो!

यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो, न निराश करो मन को।

संभलो कि सुयोग न जाय चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलंबन को
नर हो, न निराश करो मन को।

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहां
फिर जा सकता वह सत्त्व कहां
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को।

निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
मरणोंत्‍तर गुंजित गान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
कुछ हो न तज़ो निज साधन को
नर हो, न निराश करो मन को।

प्रभु ने तुमको कर दान किए
सब वांछित वस्तु विधान किए
तुम प्राप्‍त करो उनको न अहो
फिर है यह किसका दोष कहो
समझो न अलभ्य किसी धन को
नर हो, न निराश करो मन को।

किस गौरव के तुम योग्य नहीं
कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं
जान हो तुम भी जगदीश्वर के
सब है जिसके अपने घर के
फिर दुर्लभ क्या उसके जन को
नर हो, न निराश करो मन को।

करके विधि वाद न खेद करो
निज लक्ष्य निरन्तर भेद करो
बनता बस उद्‌यम ही विधि है
मिलती जिससे सुख की निधि है
समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो…

-राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त

4 comments:

  1. धन्यवाद स‍िन्हा साहब, गुप्त जी की यह कव‍िता शेयर करने के ल‍िए, बचपन से अब तक याद रहने वाली कव‍िताओं में से ये एक है

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  2. ये रचना हमारे कोर्स में थी और आज भी प्रेरित करती है ...
    आभार्र साझा करने के लिए ...

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  3. Aapki kavita sach me bahut achhi thi.

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  4. bahut bahut dhanywaad ye kavita share krne ke liye


    aabhar

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