ठहरो!!!
मेरे बारे में कोई धारणा न बनाओ।
यह आवश्यक तो नहीं,
कि जो तुम्हें पसंद है,
मैं भी उसे पसंद करूँ।
मेरा और तुम्हारा
परिप्रेक्ष्य समान हो,
ऐसा कहीं लिखा भी तो नहीं।
हर जड़, हर चेतन को लेकर
मेरी धारणा, अवधारणा
यदि तुमसे भिन्न है...
तो क्या तुम्हें अधिकार है
कि तुम मुझे अपनी दृष्टि
में हीन समझ लो।
जिसे तुम उत्कृष्टता
के साँचे में तौलते हो,
कदाचित् मेरे लिए वह
अनुपयोगी भी हो सकता है।
तुम्हें पूरा अधिकार है
कि तुम अपना दृष्टिकोण
मेरे सामने रखो।
परन्तु मेरे दृष्टिकोण को गलत
ठहराना क्या उचित है??
क्या मैंने अपने कर्मों
और कर्तव्यों का
भली- भाँति
निर्वाहन नहीं किया???
क्यों मेरा स्त्रीत्व
तुम्हें अपने पुरुषत्व
के आगे हीन जान पड़ता है??
आख़िर कब तक मैं
अपने अस्तित्व के लिए तुमसे लडूंँ??
और यह भी तो कहो कि
अगर मेरा अस्तित्व खत्म हो गया
तो क्या तुम
अपना अस्तित्व तलाश पाओगे???
सुधा सिंह 📝
बेहतरीन! अवधारणा का यह तत्व इस पटल के बिल्कुल अनुकूल है। बहुत-बहुत सुंदर । सतत शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteप्रोत्साहन हेतु बहुत बहुत शुक्रिया 🙏 🙏 🙏 🙏 सादर
Deleteबहुत ही सुन्दर सृजन सखी एक अवधारणा यह भी ...
ReplyDeleteसादर
प्रिय अनिता जी, आपका हृदय तल से सादर आभार. 🙏 🙏 🙏
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