निःस्वार्थ ! स्नेह कहीं मिल जाए, तो कोई बात बने!
वो कहते हैं, कुछ अपने दिल की कह लूँ,
तन्हाई बुन लूँ, धुन चुन लूँ, फिर दिन-रात ढ़ले!
साथ कोई जग में, यूँ ही कब देता है?
यूँ बिन मतलब के, बात यहाँ कब करता है?
स्वार्थ सधे, तो बातों का झरना है!
सबकी अपनी धुन, अपनी ही राह है,
मतलब की यारी, बेमतलब क्या होना है?
निःस्वार्थ! कोई दिल की सुने, तो कोई बात बने।
वो कहते है, दो-चार कदम साथ चलूँ,
चंद साँसें, साँसों मे भरूँ, तो ये जीवन ढ़ले!
क्या कदमों का चलना ही जीवन है?
दो चार कदम, संग ढ़लना ही क्या जीवन है?
जीवन क्या, बस स्वार्थ ही सधना है?
सबकी अपनी चाल, अपना ही रोना है,
ये है इक आग, जिसमें जलकर खोना है।!
निःस्वार्थ! कोई संग गुनगुनाए, तो कोई बात बने।
निःस्वार्थ! यूँ हीं प्यार मिल जाए, तो कोई बात बने!
वो कहते हैं, कुछ अपने दिल की कह लूँ,
तन्हाई बुन लूँ, धुन चुन लूँ, फिर दिन-रात ढ़ले!
साथ कोई जग में, यूँ ही कब देता है?
यूँ बिन मतलब के, बात यहाँ कब करता है?
स्वार्थ सधे, तो बातों का झरना है!
सबकी अपनी धुन, अपनी ही राह है,
मतलब की यारी, बेमतलब क्या होना है?
निःस्वार्थ! कोई दिल की सुने, तो कोई बात बने।
वो कहते है, दो-चार कदम साथ चलूँ,
चंद साँसें, साँसों मे भरूँ, तो ये जीवन ढ़ले!
क्या कदमों का चलना ही जीवन है?
दो चार कदम, संग ढ़लना ही क्या जीवन है?
जीवन क्या, बस स्वार्थ ही सधना है?
सबकी अपनी चाल, अपना ही रोना है,
ये है इक आग, जिसमें जलकर खोना है।!
निःस्वार्थ! कोई संग गुनगुनाए, तो कोई बात बने।
निःस्वार्थ! यूँ हीं प्यार मिल जाए, तो कोई बात बने!
स्वार्थ को साधती अच्छी रचना आदरणीय
ReplyDeleteसादर
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया ।
Deleteकोई रिश्ता ऐसा नहीं है जो स्वार्थ से अनछुआ हो. पर ऐसे रिश्ते की कल्पना तो कर ही सकते हैं. सुंदर... 👌
ReplyDeleteधन्यवाद सुधा बहन। हमारा रिश्ता भी निःस्वार्थ ही है न।
Deleteजी भाई , दिल छू लेने वाली बात कही आपने. 🙏 🙏 🙏
Delete👍👍👍
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