पथिक अहो.....
मत व्याकुल हो!!!
डर से न डरो
न आकुल हो।
नव पथ का तुम संधान करो
और ध्येय पर अपने ध्यान धरो ।
नहीं सहज है उसपर चल पाना।
तुमने है जो यह मार्ग चुना।
शूल कंटकों से शोभित
यह मार्ग अति ही दुर्गम है ।
किंतु यहीं तो पिपासा और
पिपासार्त का संगम है ।
न विस्मृत हो कि बारंबार
रक्त रंजित होगा पग पग।
और छलनी होगा हिय जब तब।
बहुधा होगी पराजय अनुभूत
और बलिवेदी पर स्पृहा आहूत।
यही लक्ष्य का तुम्हारे
सोपान है प्रथम।
इहेतुक न शिथिल हो
न हो क्लांत तुम।
जागृत अवस्था में भी
जो सुषुप्त हैं।
सभी संवेदनाएँ
जिनकी लुप्त हैं।
कर्महीन होकर रहते जो
सदा सदा संतप्त हैं ।
न बनो तुम उन - सा
जो हो गए पथभ्रष्ट हैं ।
बढ़ो मार्ग पर, होकर निश्चिंत।
असमंजस में, न रहो किंचित।
थोड़ा धीर धरो, न अधीर बनो।
दुष्कर हो भले, पर लक्ष्य गहो।
पथिक अहो, मत व्याकुल हो
दुष्कर हो भले, पर लक्ष्य गहो।
सुधा सिंह 📝
पथिक अहो, मत व्याकुल हो
ReplyDeleteदुष्कर हो भले, पर लक्ष्य गहो।
सुभाषित,सौम्य, बेहतरीन प्रेरक रचना। बहुत-बहुत सुंदर कृति हेतु बधाई ।
प्रतिक्रिया पढ़कर अत्यंत प्रसन्नता हुई. बहुत बहुत धन्यवाद आपका. 🙏 🙏 🙏
Deleteजागृत अवस्था में भी
ReplyDeleteजो सुषुप्त हैं।
सभी संवेदनाएँ
जिनकी लुप्त हैं।
कर्महीन होकर रहते जो
सदा सदा संतप्त हैं ।
न बनो तुम उन - सा
जो हो गए पथभ्रष्ट हैं ।...बहुत सुन्दर सृजन सखी
सादर
शुक्रिया सखी. सादर नमन 🙏 🙏
Deleteराह दिश्कर हो तो भी आगे बढ़ो ... पथिक चलो ...
ReplyDeleteसुन्दर आह्वान है चलते रहने का ... कर्म पथ पे जाने का ...
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय दिगंबर जी. 🙏 🙏 🙏 सादर नमन
Deleteप्रेरणादायक सुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteप्रोत्साहन हेतु सहृदय आभार आदरणीया अनिता जी. स्वागत है 🙏 🙏 🙏 सादर
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